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बिन मां बाप मैं कैसे जियूं?

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बिन मां बाप मैं कैसे जियूं कैसे खुद को मैं अपना कहूं, ये शरीर ये साँसे तुमसे ही मिली, बता, इसका कर्ज अदा मैं कैसे करूँ. ना चाह कर भी हर वक़्त पास नहीं, ये दूरियों का फासला बता कैसे सहुँ, तुम्हारा पास होना ही मेरी ख़ुशी है,  बता, बिन मां बाप मैं कैसे जियूं? नन्ही सी जान कब बड़ी हो गयी पता न चला, कब जिंदगी से रूबरू हुई, दिखाई न दिया, याद नहीं वो पल जब तुमने था गोद में लिया, बता, हर चीज़ के लिए कैसे करूँ तेरा शुक्रिया.  पहली बार जब नन्हे पाँव जमीन पर पड़े होंगे, तुम्हारे लबों पर आई होगी, प्यारी सी हसी, नहीं था मैं उतना बड़ा की जान लेता वो ख़ुशी, पर वो एहसास समझ गया, जब आ गई हलकी दूरी. घर पहुँचते ही, पापा पूछते, कैसा गया दिन, माँ तो अनमोल है, पूछती कुछ खाया या नहीं, यहाँ कोई नहीं, जो पूछे कुछ खाया, या कैसे रहा दिन, फिर समझा, माँ-बाप सी जन्नत, दुनिया में कहीं नहीं. भगवान अगर तू है, तो मेरी एक मुराद सुन, माँ-बाप को दे लम्बी उम्र, उनकी ख़ुशी को बुन, इस जन्नत की ख़ुशी के अलावा मैं, किससे सड़ूं, बता भगवान, बिन मां ...