अपना बचपन ही कहीं खो गया...

वक्त बदला, बदल गए हालात, हम बदल गए, समय बदल गया, पैसों के पीछे भागे कुछ ऐसे सब, अपना बचपन ही कहीं खो गया। मैदानों की जगह, बिसतरों ने ले ली , खिलौने की जगह मोबाईल ले गया, पर असली खेल तो समय ने खेला, अपना बचपन ही कहीं खो गया। सोते सब हैं, पर सुकून कहाँ है? जहाँ मिले शांति, वो जगह कहाँ है? कब फेसबुक, इंसटा जरूरी हो गया, अपना बचपन ही कहीं खो गया। जन्नत थी, माँ के हाँथ की बनी रोटी, आशियाना पिता ने था बना दिया, काम की भागदौड़ में ऐसे उलझे हम। कि अपना बचपन ही कहीं खो गया।